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हिंदी के विकास में वेब मीडिया का योगदान

हैरत
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आज के प्रौद्योगिकी के दौर में मीडिया एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरा है और उसमें भी न्यू मीडिया यानि वेब मीडिया के प्रति लोगों का आकर्षण प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है भूमंडलीकरण के दौर में मीडिया का दायरा काफ़ी विस्तृत हो चुका है, ऐसे में विभिन्न भाषाओँ का विकास भी वेब मीडिया के तहत ही हो रहा है . आज की स्थिति में वेब और भाषा एक दूसरे के अहम सहयोगी माने जा सकते हैं.
भारत जैसे विशाल देश में जहाँ व्यापक क्षेत्र में हिंदी बोली जाती है वहां इसके विकास में वेब मीडिया के योगदान को नज़रंदाज़ नही किया जा सकता है. ये सच है कि वेब के असर से हिंदी के स्वरूप में इसके मूल स्वरूप से भिन्नता है लेकिन यही भिन्नता ही इस विकास की गाड़ी के पहियें हैं. एक विस्तृत दायरे के साथ हिंदी अपने आप में व्यापक है. वेब मीडिया के प्रयोगों के बावजूद हिंदी के अस्तित्व पर कोई संकट नही है. दूसरी भाषाओँ के कुछ शब्दों के प्रयोग से ही हिंदी वेब के लायक बनी अन्यथा अपने मूल स्वरुप में हिंदी एक दायरे तक सीमित होकर रह जाती.

यूँ तो ८० के दशक में ही हिंदी को कंप्यूटर की भाषा बनाने का प्रयास शुरू हो चुका था परन्तु वेब के साथ हिंदी का प्रयोग २०वीं सदी के समाप्ति के बाद शुरू हुआ. सन २००० में यूनिकोड के पदार्पण के बाद २००३ में सर्वप्रथम हिंदी में इन्टरनेट सर्च और ई मेल की सुविधा की शुरुआत हुई . हिंदी के विकास में यह एक मील का पत्थर साबित हुआ. २१वीं सदी के पहले दशक में ही गूगल न्यूज़, गूगल ट्रांसलेट तथा ऑनलाइन फ़ोनेटिक टाइपिंग जैसे औजारों ने वेब की दुनिया में हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण सहायता की.

उपरोक्त सभी ऑनलाइन औजार यूँ तो प्रत्यक्ष से कोई बड़ी भूमिका में न रहें हों परन्तु हिंदी के समग्र विकास में इनकी सहायता से इंकार नही किया जा सकता है. भारत जैसे देश में जहाँ महज 10 प्रतिशत से भी कम लोग अंग्रेजी का ज्ञान रखते हैं, वहां हिंदी के इस स्वरूप की आवश्यकता बढ़ जाती है. हिंदी के इसी महत्व पर मशहूर विचारक सच्चिदानन्द सिन्हा ने लिखा है – “ भाषा जो प्रतीकों का समुच्चय होती है, संस्कृतियों के संकलन और सम्प्रेषण का सबसे सरल माध्यम भी होती है. और सम्प्रेषण आम बोलचाल की भाषाओँ से भी होता है – बल्कि अधिक सशक्त रूप से”.
यहाँ सम्प्रेषण के एक और सशक्त माध्यम “वेब मीडिया” का भी उल्लेख किया जा सकता है. या फिर हम कह सकते हैं कि वेब मीडिया एक ऐसा गुरुकुल है जहाँ प्रत्येक भाषा एक संकाय की भांति प्रतीत होती है.
इलेक्ट्रॉनिक संचार – माध्यम और कंप्यूटर आदि के उपयोग में हिंदी अपनी जगह बना ली है. इससे एक तरफ इन माध्यमों से हिंदी का प्रसार हो रहा है, तो दूसरी तरफ हिंदी का अपना बाज़ार भी बन रहा है. इससे हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका मजबूत हो रही है. कुछ इन्ही बातों को ध्यानमें रखकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था- “यदि भारत को समझना है तो हिंदी सीखो”.
देबाशीष चक्रवर्ती के ‘एग्रीगेटर’ से शुरू हुआ हिंदी ब्लॉगिंग क इतिहास बहुत पुराना नही है. अलोक कुमार के ‘नौ दो ग्यारह’ नाम के हिंदी के पहले ब्लॉग से श्रीगणेश के बाद आज हजारों की संख्या में हिंदी ब्लॉग वेब में मौजूद हैं. अपनी अभिव्यक्ति को अपनी भाषा में प्रदर्शित करने का सुख वेब मीडिया में ब्लॉगिंग के माध्यम से प्राप्त होता है. आज जबकि वर्डप्रेस, इन्दिक्ज़ूमला जैसे ढेरों ऐसे मंच उपलब्ध हैं जहाँ हम अपनी बात बेहद स्पष्ट व विस्तृत रूप से रख सकते हैं. यहाँ स्पष्टता से मतलब भाषीय स्वत्रंतता से है.
हिंदी भाषा में कही बात यदि अंग्रेजी अनुवाद में कही जाय तो यह निश्चित है कि इसकी स्पष्टता में कम से कम दस फीसदी की कमी जरूर आयेगी. हिंदी के विकास में ब्लॉगिंग ने निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसका प्रमाण यह है कि हिंदी के कई ऐसे ब्लॉग हैं जो रोजाना १००० से भी ज्यादा व्यक्तियों द्वारा देखे जाते हैं और यह कोई सामान्य बात नही है . शैली तथा वैचारिक रूप से अलग अलग ये ब्लॉग अपनी भाषायी खुशबू को प्रतिदिन हजारों जनमानस तक पहुंचाते हैं. किसी भाषा के विकास व उत्थान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है.
हिंदी के इसी स्तिथि को हम मजरूह सुल्तानपुरी के इस शेर से भी जोड़ सकते हैं-
“मनचले बुनेंगे अन रंगो-बू के पैराहन
अब संवर के निकलेगा हुस्न कारखाने से”

वेब मीडिया के आने से पूर्व सभी कृतिकारों को अपनी बात आम जनमानस तक पहुँचाने में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. ढेरों प्रयास के बावजूद भी वे अपनी कृति को एक सीमित दायरे तक ही पंहुचा पाते थे. वेब मीडिया ने इन सभी सीमाओं को तोड़ा है. आज सभी लेखक गुमनामी की कालिमा को इस माध्यम के प्रकाश की सहायता से खत्म कर सकते हैं.

इन्टरनेट पर हिंदी में खोज आने के बाद हमारी मूल जिज्ञासा का जवाब हिंदी में ही पलक झपकते ही हमारे सामने होता है, और ये सब इसी लिए सम्भव हुआ है क्योंकि इंटरनेट के सागर में नित प्रतिदिन हिंदी ज्ञान स्वरूपी नदियाँ समाहित हो रही हैं. और इसी प्रक्रिया का परिणाम हिया कि आज भारत से बाहर सात समन्दर पार भी हिंदी सभाएं एवं गोष्ठियां, सम्मेलन, पुरस्कार समारोह आदि आयोजित किये जा रहे हैं.
भारत की भाषायी स्तिथि और उसमे हिंदी के स्थान को देखने के बाद यह स्पष्ट है कि हिंदी आज भारतीय जनमानस के सम्पर्क की राष्ट्रीय भाषा है. संख्या की दृष्टि से दुनिया की इस तीसरी सबसे बड़ी भाषा के जानने वालों की यह विशाल जनसंख्या हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय सम्पर्क का साक्षात्कार कराती है क्योंकि आज दुनिया के हर कोने में बसे भारतीय वेब मीडिया की सहायता से हिंदी को तवज्जो देना शुरू कर चुके हैं. उपर्युक्त तथ्यों और बातों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि वेब मीडिया ने हिंदी समेत सभी भाषाओँ को एक सामान वैश्विक मंच प्रदान किया है. चूँकि हिंदी की अपनी विशेषताएं हैं इसलिए हिंदी अन्य भाषाओँ से तेज़ व सकारात्मक रूप से परिवर्तनशील यानि कि विकासशील है.

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